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दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे
उस ने भेजा है इक गुलाब मुझे
– इफ़्तिख़ार राग़िब
मेरे होंटों पे ख़ामुशी है बहुत
इन गुलाबों पे तितलियाँ रख दे
– शकील आज़मी
किसी ने मुझ से कह दिया था ज़िंदगी पे ग़ौर कर
मैं शाख़ पर खिला हुआ गुलाब देखता रहा
– अफ़ज़ाल फ़िरदौस
हुआ है तस्वीर इक तसव्वुर
गुलाब सोचूँ गुलाब देखूँ
– सलीम मुहीउद्दीन
दिल में छप कर भी ख़ुशबुएँ देगी
हर तमन्ना गुलाब है प्यारे
– नवनीत शर्मा
चूम कर इक गुलाब का चेहरा
तितलियों ने भी दिलकशी चक्खी
– नाहीद अख़्तर बलूच
कभी गुलाब से आने लगी महक उस की
कभी वो अंजुम ओ महताब से निकल आया
– महबूब ज़फ़र
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब
कि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है
– अहमद फ़राज़
गुलाब टहनी से टूटा ज़मीन पर न गिरा
करिश्मे तेज़ हवा के समझ से बाहर हैं
– शहरयार
वो क़हर था कि रात का पत्थर पिघल पड़ा
क्या आतिशीं गुलाब खिला आसमान पर
– ज़फ़र इक़बाल
अरक़ नहीं तिरे रू से गुलाब टपके है
अजब ये बात है शोले से आब टपके है
– अज्ञात
आज ख़ुशबू भरे गुलाबों से
मेरे दामन को भर गया कोई
– सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
एक ताज़ा गुलाब चेहरे को
एक पुरानी मिसाल कर डाला
– नासिर राव
महक उठे रंग-ए-सुर्ख़ जैसे
खिले चमन में गुलाब इतने
– मुनीर नियाज़ी
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