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फूल इतने ख़ूबसूरत होते हैं कि लोग जब अपनी महबूबा को उपमाएं देना चाहते हैं तो फूलों के सहारा लेते हैं। फूलों के रंग जीवन की जीवंतता का प्रतीक हैं। इसलिए शायरों ने फूलों को लेकर ख़ूब अल्फ़ाज़ लिखे हैं।
फूल ही फूल खिल उठे मुझ में
कौन आया मिरे ख़यालों में
– वसी शाह
फूल ही फूल याद आते हैं
आप जब जब भी मुस्कुराते हैं
– साजिद प्रेमी
फूल ने जब फूल माँगा फूल ने हँस कर कहा
फूल ले कर क्या करोगे तुम तो ख़ुद एक फूल हो
– अज्ञात
आप आए तो बहारों ने लुटाई ख़ुश्बू
फूल तो फूल थे काँटों से भी आई ख़ुश्बू
– अज्ञात
ऐसे खिला वो फूल सा चेहरा फैली सारे घर ख़ुशबू
ख़त को छुपा कर पढ़ने वाली राज़ छुपाना भूल गई
– ख़ावर अहमद
फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं
काँटे बे-कार हिफ़ाज़त में लगे रहते हैं
– वसीम बरेलवी
मोहब्बत फूल बनने पर लगी थी
पलट कर फिर कली कर ली है मैं ने
– फ़रहत एहसास
चाँद होता नहीं हर इक चेहरा
फूल होते नहीं सुख़न सारे
– रसा चुग़ताई
फूल क्या डालोगे तुर्बत पर मिरी
ख़ाक भी तुम से न डाली जाएगी
– अज्ञात
तेरे इस फूल से चेहरे ने अब के
मेरे ज़ख़्मों को महकाया बहुत है
– अनवर शादानी
महकते फूल सितारे दमकता चाँद धनक
तेरे जमाल से कितनों ने इस्तिफ़ादा क्या
– अहमद ख़याल
सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है
– कैफ़ भोपाली
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