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‘आदत’ पर शायरों के अल्फ़ाज – अमर उजाला

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एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती
– दुष्यंत कुमार

मुझ को आदत है रूठ जाने की
आप मुझ को मना लिया कीजे
– जौन एलिया
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
– गुलज़ार

ख़मोश रहने की आदत भी मार देती है
तुम्हें ये ज़हर तो अंदर से चाट जाएगा
– आबिद ख़ुर्शीद
ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
– अब्दुल हमीद अदम

तिरे भूल जाने की आदत के सदक़े
तुझे भूल जाने को जी चाहता है
– सय्यदा फ़रहत
मुझे मायूस भी करती नहीं है
यही आदत तिरी अच्छी नहीं है
– जावेद अख़्तर

अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे
कोई दर खोले न खोले हम पुकारे जाएँगे
– वसीम बरेलवी
मुसलसल सोचते रहते हैं तुम को
तुम्हें जीने की आदत हो गई है
– एहतिमाम सादिक़

अपनी आदत कि सब से सब कह दें
शहर का है मिज़ाज सन्नाटा
– सलमान अख़्तर

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